ग़ज़ल-3

डूब गई जिंदगी क्यो ज़हर में
होता कोई अपना इस शहर में

चांदनी के पंख कट गए होंगे
इतना अँधेरा न था इस दहर में

यह मौसम पगला गया कैसे
धुल एक भी नही इस शज़र में

सर पिटती रही होंगी हवाए
डूब गया सितारा किस नज़र में

यह अचानक कारवा को क्या हुआ
रोने की बात न थी इस सफर में

कटेगा कैसे यह अँधेरा दोस्तों
चाँद छोड़ गया बिच डगर में



------------------------------------
करीब इतना ही रखो की दिल बहल जाए
अब इस कदर भी चाहो की दम निकल जाए



अब आँखों में नही सैलाब कोई
मुझे लौटा दे मेरे ख्वाब कोई

अजब मजबूरिया थी चुप रही मै
मुझे करता रहा आदाब कोई

मै तूफानों से बचना चाहती थी
मगर दरिया था पायाब कोई



खामोश लम्हे







खामोश लम्हे..1

  एक इंसान जिसने   नैतिकता की   झिझक मे अपने पहले प्यार की आहुती दे दी और जो उम्र भर  उस संताप   को   गले मे डाल...