ग़ज़ल-5

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो।


जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो।


संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो।


ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो।


जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर
चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो।


- जाँ निसार अख़्तर




अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
दर्द होता है या नहीं होता ।

इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा
आदमी काम का नहीं होता ।

टूट पड़ता है दफ़अतन जो इश्क़
बेश-तर देर-पा नहीं होता ।

वो भी होता है एक वक़्त कि जब
मा-सिवा मा-सिवा नहीं होता ।

दिल हमारा है या तुम्हारा है
हम से ये फ़ैसला नहीं होता ।

जिस पे तेरी नज़र नहीं होती
उस की ज़ानिब ख़ुदा नहीं होता ।

मैं कि बे-ज़ार उम्र के लिए
दिल कि दम-भर जुदा नहीं होता ।

वो हमारे क़रीब होते हैं
जब हमारा पता नहीं होता ।

दिल को क्या क्या सुकून होता है
जब कोई आसरा नहीं होता ।

हो के इक बार सामना उन से
फिर कभी सामना नहीं होता ।

-जिगर मुरादाबादी


चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा
चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा,
दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा,
थरथराता रहा धुआँ तन्हा

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा

हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें कहाँ तन्हा

जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकाँ तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक 
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा।

-मीना कुमारी


होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते।

पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते।

दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते।

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।

इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह है
ये आग लगाते है बुझाने नहीं आते।

क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते।

अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते।


डॉ.बशीर बद्र

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