ग़ज़ल - 2

खामोश लम्हे


गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या-क्या है
में गया हूँ बता इंतजाम क्या-क्या है

फ़कीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या-क्या है
तुझे पता नही तेरा गुलाम क्या-क्या है



सिर्फ़ खंजर ही नही आँखों में पानी चहिये
खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चहिये

में तेरी आवारगी को कुछ नही कहता मगर
यार बादल मेरे खेतो को भी पानी चहिये



तूफ़ान तो इस शहर में अक्सर आता है
देखे अब के किस का नम्बर आता है

यारो के भी दांत बहुत ज़हरीले है
हमको भी सापों का मंतर आता है

बच कर रहना एक कातल इस बस्ती में
कागज़ की पोशाक पहन कर आता है

सुख चूका हूँ फिर भी मेरे साहिल पर
पानी पीने रोज़ समंदर आता है



डा. राहत इंदौरी


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इतने करीब आके सदा दे गया मुझे
में बुझ रही थी कोई हवा दे गया मुझे

जीने का इक मिजाज़ नया दे गया मुझे
माँगा था मैंने ज़हर दवा दे गया मुझे


हाथ यू हाथ में नही मिलता  
हाथ यू हाथ में नही मिलता
मुफ्त सौगात में नही मिलता

प्यार मिलता है प्यार से ' अंजुम '
प्यार खैरात में नही मिलता

शाम जब भी परिंदे चहकने लगे
मेरी पलकों पे जुगनू चमकने लगे

उसके आने की बस एक ख़बर आई थी
और कलाई के कंगन खनकने लगे

जरफ है लाज़मी आदमी के लिए
तुमने पी भी नही और बहकने लगे


अंजुम रहबर




खामोश लम्हे






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