वक़्त बीतता गया। क्वार्टर के आवंटन की अवधि खत्म होने पर भानु को दूसरा मकान खोजना पड़ा। जिस रास्ते से भानु कॉलेज जाता था उसी रास्ते मे एक मकान मिल गया। सयोंग से रंजना भी उसी रास्ते से कॉलेज जाती थी। रंजना और भानु दोनों के कॉलेज एक ही रास्ते पर थे, मगर समय अलग अलग था। भानु जब कॉलेज जा रहा होता तो उसी दरमियाँ रंजना भी उसी रास्ते से अपनी कुछ सहेलियों के साथ कॉलेज से वापिस आ रही होती। दोनों चोर नजरों से एक दूसरे की आंखो में देखते और पास से गुजर जाते। रंजना चाहती थी की भानु कुछ कहे और उधर भानु भी कुछ ऐसी ही उम्मीद पाले बैठा था। सहेलिया साथ होने के कारण रंजना भाऊ की तरफ देख नहीं सकती थी मगर प्यार करने वाले राहें निकाल लेते हैं। पास से गुजरते वक़्त रंजना सहेलियों से नजरें बचाकर, बिना पीछे मुड़े अपने हाथ को पीछे करके भानु को बाय बाय कह देती। भानु उसके इस इशारे को पाकर प्रफुल्लित हो जाता। प्रेम की कोई भाषा नहीं होती बस अहसास होता है। ये दोनों भी उसी अहसास से सरोबर थे।
वक़्त अपनी रफ्तार से
गुजर रहा था और उधर दो प्रेमी चुपचाप वक़्त के सिने पे अपनी प्रेम कहानी लिखे जा
रहे थे। दोनों के परीक्षाएँ आरंभ हो चुकी थी। समय-सारिणी अलग अलग होने से
मुलाकातें भी बाधित हो गई। भानु सो रहा होता उस वक़्त रंजना कॉलेज के लिए जा रही
होती। भानु के मकान का दरवाजा बंद देख रंजना मायूसी से सहेलियों के साथ आगे बढ़
जाती। दोनों को पता ही नहीं था की कौन किस वक़्त आता जाता है।
अचानक नींद से चौंककर
उठे भानु की नजर खुले दरवाजे पे पड़ी और तभी रंजना सामने से मुस्कराती हुई निकल
गई। भानु के कानों में घंटियाँ सी बचने लगी, एक नई स्फूर्ति के साथ वो
बिस्तर से उठा और झट से दरवाजे के पास पहुंचा। रंजना आगे नकल गई थी। आज वो अकेली
थी। कुछ दूर जाकर रंजना ने पीछे मुड़कर देखा तो भानु को दरवाजे के बिच में खड़ा
देख मुस्कराकर हाथ हिलाया और आगे बढ़ गई।
आज भानु का आखिरी
पेपर था इसलिए वो आज रंजना से आमने सामने बात करके ही रहेगा. उसने निर्णय कर लिया
था की जैसे ही दोपहर ढले रंजना कॉलेज से वापिस आएगी वो कुछ कहने की शुरुआत करेगा.
आखिर कब तक ऐसे ही चलता रहेगा. आज का दिन भानु को कुछ ज्यादा ही लंबा महसूस हो रह
आता. उसका दिल भी इस निर्णय के बाद कुछ ज्याद ही धडकने लगा था. उसने नोर्मल होने
की बहुत कोशिश की मगर दिल कुलांचे मारने से बाज नहीं आया. ज्यों ज्यों मिलन की
बेला पास आ रही थी उसकी रफ़्तार जोर पकड़ रही थी. आज सालभर का मूक प्यार जुबान
पाने वाला था.
अचानक भानु को अपने
सपने टूटते हुए से महसूस हुए. रंजना के साथ आज फिर उसकी दो सहेलियाँ थी, और
वो जानता था वो और रंजना, इन सबके होते हुए कुछ नहीं बोल
पाएंगे. दिल में उठा ज्वार दम तोड़ने लगा था. मगर प्यार भी उफनते हुए जल प्रपात की
भांति रास्ता निकाल ही लेता है. भानु जानता था की रंजना की दोनों सहेलियाँ अगले
मोड़ से दूसरी तरफ चली जायेगी और उसके आगे रंजना
अकेली रहेगी. भानु से अपनी साईकिल निकाली और जल्दी से पीछे वाली सड़क से लंबा
चक्कर लगाकर उस सड़क पर पहुँच गया जिस पर रंजना जा रही थी . उसने सामने से आती
रंजना को देखा ! दिल अपनी रफ़्तार बद्द्स्तुर बढ़ाये जा रहा था. भानु का दिल और
दिमाग दोनों आज बगावत पर उतर आये थे. भानु आज उन पर काबू नहीं कर पा रहा था. फासला
निरंतर कम होता जा रहा था. रंजना ने देख लिया था की भानु सामने से आ रहा है. वो
साईकिल पर था. निरंतर कम होते फासले ने दोनों दिलों की धडकनों में भूचाल सा दिया
था. अचानक भानु की नजर दुर्गा के भाई पर पड़ी जो सामने से आ रहा था. भानु का
मस्तिष्क झनझनाकर गया था. भानु नहीं चाहता था की दुर्गा के भाई को उनके प्यार का
पता चले और फिर इस तरह बात पूरी कॉलोनी में फ़ैल जाये. लेकिन आज उसने फैसला कर
लिया था की रंजना से मुखातिब होकर रहेगा. फासला और कम हो गया था. अब वो रंजना को
साफ साफ देख सकता था. वो मात्र २० कदम की दुरी पर थी. बहुत कम मौके मिले उन दोनों
को ये फासले कम करने के मगर कभी बात नहीं हो पाई. आज वो दोनों अपना संकोच तोड़
देना चाहते थे। दोनों अपना हाल-ए-दिल कह देना चाहते थे।
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